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यथावत
जगत्प मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में पास हुमा । मनोरमा गो यह सुनकर सुख हुना । पर बहुत जल्दी यह चिन्ता में पड़ गयी।
मनोरमा एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिया है। महीने गा उसे पहचत्तर रपया मिलता है । इस कस्य ने एक हाई स्कूल भी है और वहीं से जगरूप ने मैट्रिक पिया है । यह तो जैसे-तैसे चल गया। मनोरमा सोबती थी कि मैट्रिक पढ़ लेने के बाद यही पिसी काम-धन्धे में लग लगा जायगा । उगने कुछ लोगो से इस बारे में पहनर भी रखा था। लेकिन उसे डर था । जगरूप पटने में तेज था और मनोरमा गोटर मगा रहता था कि अगर मैट्रिक मे वह बहुत अच्छे नम्बर्ग मे पार हया गो फिर क्या होगा? वर चाहेगा कि आगे पढे, पायद मास्टर लोग भी चाहेंगे । सुद उनके मन में भी यही होगा कि प्रागे पद पर परमागे पढना होगा कसे?
अपने पारो तरफ देसनी थी पोर यह टर उससे दर नही होना था। बारह नौदह साल से नन नखे में अकेली रहती है और मास्टरी फरनी है। ममे विशेष अविना नही होती है और प्रानधाम लोगो में उनके लिए अच्छे भाव ।। पर मयने तो कुछ नही होता सब मे है। और पंगे या गवाल पाने पर नागे तरफ शोलकर मन उसपा का ह जाना है।
जगरप ने अपने पार होने पी गबरी मी अपनी मा गो सुनाई। आने से पपने अरमान भी बतलाए कि में यह मालेज मे जाएगा, बी० ए० मरेगा, एम० एमगा। पीर गा तुम दुध पियरन परो । गुनार मा उग सलोने जगरूप मो देगनी दी । बोलत