________________
जैनेन्द्र की पहानिया दसवा भाग
हो कि उन्हें अपना आधार मानते हो।"
इतने में मुरारी टेनसी लेकर आ गया। रामशरण ने कहा, "मुरारी | टैक्सी मे जानो और मेरा सामान यही ले आयो। मैं नही समझता था-"
मुरारी कमरे में आकर श्रममजस में खड़ा रह गया था। मान्दा पलग पर बैठी थी और रामगरण सडे थे।
गारदा ने कहा, "वैठो, मुरारी। और तुम भी बैठो न । ऐनी जल्दी क्या है सामान की ?" ___ "तुम चुप रहो । • 'मुरारी, जायो । मुझे ऐसी अाशा न ची तुमसे , मैं यही ठहरगा। सभी सामान मेरा लेकर पा जानो।" । __ मुरारी पन्लग ज्यादे दूर नहीं था। शारदा ने हाथ बढाकर उसे बाह ने पकड़ा और उसी पलग पर बिठाते हुए कहा, "तुम भी बैठ क्यों नहीं जाते हो, कुर्मी पर । और मुरारी, इनकी बात पर मत जाना। क्यो, सामान लाना ही है ? में फिर जाकर ले पाऊगी।"
"नही । मुरारी को जाने दो।"
"तो अच्छा मुरारी, टमी ले जायो। दो घण्टे बाद नाना । सामान फिर देखा जाएगा।"
मुरारी ने जाने से पहले रामगरण को देना। रामदारण तु की तरह राडे रहे । मानो उनकी अनुमति है । मुगगे कुछ देर अनमजा में रहा और फिर चला गया।
रामशरण कुछ देर माये मे तेवर माले गरे ही है। फिर वापर पलग पर बैठ गये । माग्दा जरा पर हट गई।
"नयो, पना वार है ?" "तुम-पया चाह रहे थे ?"
"यह ठीक नहीं है हम लोगो का प्रग रहना । दग जने दगात पहले हैं । और बच्चों पर बुरा भगरा है।"
भारदा ने दे। यह उनका पति है। उमसा मन अन्दर जन