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जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग क्या है मब है, और व्यर्थ है । पड़ रहे है और शब्द और नापय भी पढे जा रहे हैं, पर कुछ नहीं है और सब धोया है। कार और व्यर्ष है। जीना बोम है। मान करना है पीकर । गव जी का जाल है, नहीं तो।
और मनोरमा बंटी है । राहती हुई विमनम्मा एक विधा किनिसको टालने का या निबटाने या उपाय नहीं है ।
एक दो पान दस मिनट हो गए। नही राहा नही, जाता है । था अब तक कि होने दो ओ हो मै दया गरु ? लेगिन वह सब था, पर नहीं चल रहा है। नहीं, कुछ करना होगा। अपने में घिरपर बैटना नहीं हो पाएगा, नहीं हो पायेगा । मनोरमा अपनी जगह से उठी। अट्ठावन वर्ष की मनोरमा ।
पलते-चलते गोफे दुर्मी में पीठ के पीछे यह पहच गई। रोफिन पति पर रहे है । उन्हें नहीं मालग । उसने कन्धो पर हाथ रामा । उन्हें नहीं मालूम । शान्यो को दवाया । उन्हें नहीं मालूम । ___ जोर ने दवाया । नहीं मालूम
"सुनो ।" "पया है ? मुझे पहने दो।"
पली ने कर मिनार बनने हावा ने छीनी पौर यही में गोर में मज र क दी। धौर गम गाहा "पोन"
"यह वा वस्लमोग।" "अनमा प्रछा, उठो।" "मिजार लामो पा मेरी नठा फे।" "पिनायपोगे?" "नी तो इन नम्झाग गिर" "शिर यो, पौरपुर की गायों देनो।" "हटो तुम, र साम्रो पदा" मनोरमा गामने मा गई थी। उसने उटारर पनि या Fre र