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चक्कर- सदाचार का
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"लडका है ? कितने वर्ष का है ?"
" दो वर्ष की बच्ची है ।"
" तो तुम देश के काम मे हो ?" "जी ।"
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"अच्छा है, अच्छा है ।"
बात खतम सी लगती थी । मैंने हठात् कहा, "सदाचार के प्रचार
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के लिए बताइए क्या किया जाना चाहिए ?"
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-की समितिया वन तो रही है । काम भी तेजी से
"सदाचार ? हो रहा है । तुम्हे उसमे लग जाना चाहिए ।"
"लेकिन, आप — "
"हा, हा, कहो । मैं क्या ?"
"आपका उसमे योग चाहिए ।"
"योग है क्यो नही । अवश्य है, अच्छे काम मे भगवान का योग होता है । फिर सवाल क्या
"हम श्रापको अपने साथ समझ सकते है ? समिति मे ले सकते हैं ?" "साथ में क्यो नही है । लेकिन समिति — उसको जाने दो ।" " समिति तो कार्य को स्वरूप देने के "हा, हा, वह तो है ।" शर्मा जी ने जैसे देखना श्रव प्रारम्भ कर रहे हो ।
लिए है ।"
कहा- और मुझे ऐसे देखा
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कुछ क्षण उस निगाह के नीचे में अस्तप्राय सा बैठा रहा । फिर हठात् कहा, " तो आपकी अनुमति हम मान सकते है ?"
उन्होने उत्तर नही दिया । चेहरे पर कुछ काठिन्य फलक श्राया । लेकिन हठपूर्वक मानो हसते हुए बोले, "तुम्हे उसकी बहुत चिन्ता है ? तुम तो जवान हो, बड़े लोग चिन्ता कर ही रहे है । देश की बातें उन पर छोड दो ।"
"लेकिन, सर, यह देश की बात नही है, जनता की बात है । जनजन की बात है ।"