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जैनेन्द्र को पहानिया दसवा नाग नमीव हो सकता । और वैठा इसलिए है कि एच० एम० इन महागय ने मिलना चाहते है और मैं किसी तरह एच० एम० तक अपनी पहच बनाना चाहता है । कुछ बेतुकी सी मालूम हुई वह पाच मिनट की देर कि जव शर्मा जी वरामदे मे उपस्थित हुए । मैने पडे होकर हाय गोटे
और उन्होंने कथा पकड पार पहले मुझे उसी तरत पर बिठाया और वगवर में फिर सुद बैठ गये । पंगे मे लकडी की चट्टी थी और पहने हए थे प्राधी धोती और प्राधी वाहो की बही। चेहरे मे कोई सान प्रभाव नहीं नजर आया। मौम्य था अवश्य, पर रोगीता नहीं कह सकते।
"कहो, भाई, यही रहते हो, मामला नगर?"
"एले न बोली, जैसे मैं तुम्हे जानता नही हु, गालीगामजी के तो लडके हो न? कहो, कैने पार किया ?" ___ हम लोग मानते थे कि रघर श्राप चुछ उदागीन रहते हैं । देश को सबस्था विपम है । पर की लोलुपता हैं। भावाचार रद रहा। ऐसे में पाप में कहे वि उदामीन रहने का हक नहीं है, भारए नार हम नौजवानो का मार्गदर्शन कीजिये । माग पर गनिक मूल्यों की तरफ वा दुर्लक्ष हो रहा है अाजकल । एक ग्रापा-पापी चल रही है । दैगिए ती दया नमः शुद्ध नहीं मिलती। गाने-पीने की नीजो मे तो मिलान पी हद नहीं रह गई है। 'गोरी की पूलिसी नती । म घोर दमा मे प्रापत उठना चाहिए और ."
"ठीक है, बीक है। तुम पर क्या हो "
"छह वर्ष हुए पालिटिग में हम लिया या गिनहर परिया मोकग-गे-कम धारगी ना देना चाहिए बैंग मेधा के Fिre गिना जी ने यही गोनार याम का योग मुन पर नती माना और प्राग-जैगो के मार्गदर्शन में सेवा के निमिचोट दिया है।"
"चन्ने कितने है?"