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उलट फेर
१४५ शेखर ने जल्दी से कहा, "भाई साहव ने कहा है, पीछे हम पहुचा देगे घर | ताकीद से कहा है कि तुम्हारी भाभी अभी जाएगी नही, कह देना ।"
प्रमीला ने सुन लिया । उसको अपना अपराध समझ न पा रहा था। लेकिन अब एकाएक शेखर के स्वर से हठात् उसे लग पाया कि कही उसका भय निर्मूल ही तो नही है ? फिर भी डेढ माल के अनुभव में उसने पाया था कि माथुर साहब उसकी तरफ खासतौर से सख्त है । उसे तरक्की नही मिली है और उस पर दूसरी ताकीदें भी रही हैं । जाने एक साथ आश्वासन और आशका से कैसी वह मथी जाने लगी।
"क्या हुआ भाभी ?" शेखर की भाभी कुछ नहीं बोली। "यह तुमको क्या हो रहा है ?" "कुछ नही।"
शेखर की बाहो ने अनायास भाभी को कन्यो-से जैसे अपनी ओर खीच कर सरक्षण मे लिया। उस दवाव पर एकाएक प्रमीला मे समय फटता चला गया और विश्वास भरने लगा।
भीड छट चुकी थी, लोग चले गए ये और प्रमीला मायुर माहव के सामने अकेली बैठी थी। शेखर था और कमरे से वह जा चुका था। गए एकाच मिनट हो गए और उन दोनो मे कोई कुछ नहीं बोला था।
अन्त मे माथुर ने कहा, "प्रमीला |" स्वर भारी था और काप रहा था। प्रमीला ने घवडा कर ऊपर देखा।
माथुर ने अपनी निगाह नीची नहीं की । वह प्रमीला को देखते रहे । देखते-देखते उनकी आखो मे आसू भर आए । भर कर वे टप-टप गिरने भी लगे।
प्रमीला विमूढ-मी बैठी रह गई । स्कूल की वह कर्मचारिणी थी, मायुर उपाध्यक्ष थे। यह न होता और प्रमीला नारी हो सकती तो पुग्प की ओर बढकर वह नान्त्वना देती और ग्रामू न वहने देती। पर