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जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग
दया ने कहा, "देखो, बहन जी । कैसा शान्त चेहरा है । कष्ट से नही मरी, सुख- साता से मरी है ।"
"हा, देखो, पलक जैसे चाहिये वन्द हैं, माथे पर सलवट नही है । कष्ट की कोई लकीर नही है हे राम !" लीलाधर कमरे को देख
।
रहे थे । नीचे टीन का वडा वक्स था । एक तरफ कई कुडो सी जडी अलमारी थी। मालूम हुआ, गर्मियों मे खास कर मुर्दे ज्यादे हो जाते हैं तो वक्स मे भर दिये जाते है । अलमारी भी इसी काम के लिये हैं ।
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" भर दिये जाते हैं
श्रादमी ने कहा, "जी नही, इन्तजाम पूरा रहता है, वर्फ वगैरह का । मजाल कि वदवू आये ।"
लीलाधर ने कमरे को चारों तरफ से देखा, खिडकी से बाहर सफेद हड्डियों के टुकड़े-टुकडे हुए ढाचे पडे थे । और देखा कि पत्नी और दया सुखिया के शान्त चेहरे को देस रही है । उन्होंने कहा, "चलो " और तीनो चले आये | और शव रह गया और बाहर सब वैसे ही
हुआ जा रहा था जैसे हो रहा था ।
दिसम्बर, '६४