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वे दो
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हू, तुम दुमी हो । ऐसी बात नया है ?"
अजीत का गला भर आया । उसने कहा, "कुछ नहीं ।" और हठात् कचे पर पाए उनके हाथो को उसने हटाया । कहा, "आप मुझे छोर दीजिए । मैं अकेला हू और अकेला रह सकता है । और पिसी में कुछ नहीं मागता है।"
गमकुमार एक-दो कदम पीछे हट पाए । बोले, "मैं अभी द्रौपदी को बुलाता ह । तुम लोग बात करना और मैं यहा न रहूगा । और तुम सराय में न रहना।" वाहकर रामकुमार मेज़ की तरफ वटे कि बटन दयाफर घटी दें। तभी अजीत ने कहा, "ठहरिए। अभी दुप्पी को न युलाइए । मैं पाप से जाने कब से कहना चाहता था, हिम्मत नही होती पी। पाप-पाप बैठ जाइए।"
राजकुमार बैठ गा और भीनी वाणी-से बोले, "बेटा, फहो क्या
यात है?"
मनीत का गला भर्रा माया, 'पया पहू, बाबूजी । मेरी मा नहीं है। मामी, घुगा को नहीं है । यहिन नहीं है । पिना जी मुन से पचपन में जो स्ठे है, जो ऐगे रठे हैं कि वह नही ये बराबर हो गये हैं। या मलेन गेट चुके हैं । मै उनका पालीता है और जानता दिनार पार के लिए उनके पास एफ केवल मै हू । लेकिन वह मुन ने मानिसमोर उनको प्रय सब पागाए गुम कुलागार से जल चुगी हैं। दुनिया में गया पता है । यही मोपना नहीं है । विमलाजमीन, तो पाया है । यह पारनाई, पानी, र आ. तो पीकोकी। मशागद भोला नहो पा मार मगर मेरा हो । Fiगा । में अगमा पता गमा और वा प्रयती पती गई। गोरखगर म पर ही में अपने लिए योटा-चन मा पानी र पहा तो एका दम देता है. सो में या तोर सपना हलि देगीनादमी में मोना में अनिल रर गया मारा । गमग अगर पीने वरती तो