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जैनेन्द्र की कहानियां [सातवी भाग]
सरसों ने कहा, "नानो बुढ़िया, तू फूल नहीं लाई हमारे लिए ?" बुढ़िया ने कहा, "कल लाऊँगी, बेटा, कल ज़रूर लाऊँगी।" देवेन्द्र उर्फ दिब्बू ने पूछा, "नानो री, तू कब मरेगी ?"
दिल्लू (दिलीपकुमार) ने कहा "जब मरे, हम से कह दीजियो। बिना कहे मत मरियो। हम सत्त-राम करेंगे। नानो, हम सब साथ चलेंगे।"
"अच्छा बेटा।"
सरस्वती ने कुछ सोचकर कहा, "नानो बुढ़िया, तू मरेगी, मैं तेरे पै फूल डालूगी । जित्ते फल होंगे, सब डाल दूंगी।"
बुढ़िया के हाथों में डलिया थी। अांखें उसकी भीगने को प्रा गईं, और वह उन्हें पोंछ सकी नहीं। बोली, "नहीं बेटा, फूल तुम सब बांट लेना । मरघट में क्या अच्छे लगेंगे, तुम्हारे हाथों में फूल अच्छे लगेंगे।"
अब बुढ़िया को कौन बताये कि नहीं, अच्छे लगने की बात बिलकुल नहीं है। ऐसी सरस्वती मूरख नहीं है । सो क्या उसके जी में यह है कि मरघट में फूल अच्छे लगेंगे ? पर, नानी को जब होश नहीं रहेगा, तब लड़के सब-के-सब उसके फूलों पर हल्ला मचाना चाहेंगे; सो, तब नानी का एक भी फूल वह इधर-उधर किसी को नहीं ले जाने देगी-हाँ; 'एकाएक नानी की अर्थी पर चिनकर रख देगी-यह सारी बात है। उन्ने कहा, "तू तो मर जायगी, नानी, तुझे कुछ भी पता नहीं चलेगा, और मैं सब-के-सब फूल तेरे पर ही डालूंगी।"
और वह ऐसी सन्नद्ध-सी खड़ी हो गई, जैसे फूल डल रहे हैं, और 'वह देखने को तैयार है, कौन है जो एक भी फूल ले जाना चाहता है।
नानी ने कहा, "अच्छा बेटा।"
निम्मो नाम वाली निर्मला ने कहा, "नानी, तू अच्छी नहीं है। हमें तू फूल नहीं लाके देती रोज़ ।"
एक और ने उसकी धोती पकड़कर कहा, "नानी, हमें डलिया दिखा, फूल हैं तेरे पास ।"