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________________ राजीव और भाभी वहाँ उसे देखते ही मोटर में से शिवशंकर ने कहा, "अजब आदमी हो । अब तक चल ही रहे हो ! ऐसे चलोगे ?" राजीव ने बरामदे के नीचे सड़क पर आकर कहा, "अब नहीं चल सकूँगा।" "क्यों ?" "यह औरत-जात बड़ी खराब है जी। मैं तो अभी बाज़ार से पक्का रंग लेकर पाता हूँ !...हाँ, चलो तुम्हारी मोटर में चलू।" शिवशंकर ने कहा, "क्यों, तो साथ नहीं चलोगे ?" । "साथ चलूगा ? देखते तो हो, यह सिर का हाल । बाजार से रंग लाकर इस सिर की अब मरहम-पट्टी करनी होगी।" बाज़ार पाने पर राजीव वास्तव में ही मोटर से उतर गया। माने न माना । इतने में ही उसे सामने से आते दिखाई दिए, भाई-साहब, यानी जिनको भाभी के नाते राजीव जानता था। हँसते हुए आ रहे थे कपड़े उनके भी रंग-बिरंगे हो रहे थे, हाथ में रूमाल में फल लटके थे, एक ओर से सेंध बनाकर दो चोइल ककड़ियाँ निकल रही थीं और भीतर से लौकाट उझक रहे थे। पूछ उठे, “कहिए, कहाँ ?" राजीव ने कहा, "कुछ नहीं, यों ही।" "मोटर में ये कौन थे ?" राजीव ने कहा, "लाला शिवशंकरलाल थे।" "अच्छा ?" और 'अच्छा' कहकर भाई-साहब आगे बढ़ गए। राजीव का उत्साह हठात् कुछ मन्द हुआ। फिर भी जैसे एक मद सवार था। दुकान से कई तरह के रंग लिए, घर आकर उन्हें घोला और लोटा भरकर पहुंचा वहीं ऊपर । भाभी का छोटा बालक, जिसका नाम पड़ा था-छोटे, और जो बड़ा
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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