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राजीव और भाभी
राजीव को नाम से आप न जानते हों, यह कठिन है-जी हाँ, शिल्पी राजीव ही । उसके साथ, कोई बीस वर्ष हुए, एक होली के दिन क्या अघटनीय घटित हुमा, सो आज सुनाने की छुट्टी हुई है।
आज तो वह बहुत बड़ा आदमी करके जाना जाता है। बड़े प्रादमी से अवश्य भाव यह नहीं कि देह उसकी संक्षिप्त नहीं है। दुबला तो वह अब भी सदा की भांति है । लेकिन अब जो सम्पन्नता उसको चारों ओर से ऊँचा उठाए है, वह न थी। नई गिरिस्ती उसकी हुई थी, और तब माँ भी थी। जैसे-तैसे अपने को और उनको पालता था।
बीस-बाईस वर्ष की अवस्था में मनुष्य की आकांक्षाएँ स्वप्निल होती है । उनको परवरिश मिले तो वह पनपें, नहीं तो सूखकर मुरझा जाती हैं, और यौवन बीतते-बीतते आदमी अपने को चुका हुआ अनुभव करता है । वे आकांक्षाएँ स्नेह मांगती हैं। स्नेह अनुकूल समय पर और यथानुपात मिले तो वे हरी-भरी होकर कैसे-कैसे फूल न खिला पाएँ, कहा नहीं जा सकता । नहीं तो वे अपने को ही खाती-चुकाती रहती हैं। मूल जिनकी दृढ़ हों, ऐसी प्रकृतियाँ विरोध में से भी रस खींचती हैं, अवश्य; और वे मानो चुनौती-पूर्वक बढ़ती रहती हैं। पर इस शक्ति को प्रतिभा कहा जाता है; और प्रतिभा सरल नहीं है, वह तो विरल ही है।
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