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टकराहट
१९
लीला-कुछ नहीं। तुम कैलाश बाबू को कुछ न कहना। में अब जा रही हूँ। मेरी तबियत अब ठीक है। तो भी तुम्हारे कहने से अब जाकर लेट जाऊँगी। लेकिन कल से मेरा सफाई का काम पक्का है। ___ कला-नहीं, यह नहीं हो सकता। अभी तुम काम के योग्य नहीं हो।
लीला-हो सकता है। मैं खुद कैलाश बाबू के पास जाकर कह देती हैं कि मैं अब अच्छी हूँ और कल से अपना काम सँभालती हूँ। बस, तुम इसमें कुछ न बोलना।
कला-लीला !
लीला-मैं अभी ही जा रही हूँ। मुझे तुम-जैसे बनने का अधिकार क्यों नहीं है। (चल देती है। )
कला-अभी जा रही हो ? अभी तो... लीला-हाँ, कहूँगी कि किसने कहा कि मैं ठीक नहीं हूँ। कला--लीला !
[ लीला चली जाती है।
चौथा दृश्य लीला का कमरा । लीला आती है। उसके हाथ में झाड़ है, बाल फैले हैं, चेहरे पर धूल है। झाड़, एक प्रोर रख देती है और शीशा देखती है। देखकर प्राइना दूर कर देती है और पास एक ओर बाल्टी से पानी लेकर मुंह धोती है । धोकर फिर प्राइना देखती है। बाल ठीक करती है और फिर कपड़े बदलना प्रारम्भ करती है। इसी समय बाहर द्वार पर थपथपाहट होती है।]
लीला-कौन ? आवाज-मैं चार्ली। लीला-कौन ! ( प्रसन्न होकर सहसा सोच में पड़ जाती है।)