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________________ ७५ कहानीकार कहाँ आ गया ? यही कहानी के गुरु हैं ? भले गुरु हैं ! कहानी तो बड़ी रंगीन चीज़ है, और ये सूखे दीखते हैं। जी हुआ कि भूल हुई । चलो वापस चल दो। ___ उस समय मेरी कुलीनता ही आड़े आई। मेरे जैसा व्यक्ति भला अशिष्ट हो सकता है ? सो, शिष्टता के नाते मैं आकर एकदम लौट नहीं गया। ___ मैंने अपना परिचय उन्हें दिया, जिस पर वे बड़े कृतार्थ जान पड़े। वे मेरे नाम से और बड़ाई से परिचित थे और बोले कि मेरा साक्षात् करके बहुत प्रसन्न हुए। खुलकर उनसे बात करने की तबीयत तो मेरी न थी, फिर भी, कुछ कहने के लिए मैंने कहा कि आप तो बहुत अच्छी कहानी लिखते हैं, दर्शन की इच्छा से आपके पास आ गया हूँ। ____ उन्होंने कहा कि लोगों की कृपा है, वैसे जो लिखता हूँ लिखता हूँ। इसका सब धन्यवाद तो लोगों को ही मिलना चाहिए जो उसे अच्छा कहते हैं और इसलिए अच्छा बना देते हैं । __ होते-होते मैंने कहा कि मैं भी चाहता हूँ कि कहानी लिखू, पर देखता हूँ कि लिखी नही जाती । बताइए, कैसे लिवू ? बोले कि लिखी नहीं जाती तो चाहिए क्यों ? चाहना छोड़िए । कहानी लिखना कौन ऐसा बड़ा काम है कि हर किसी के लिए जरूरी हो ? आप कहानी लिखे बिना क्यों निश्चिन्त नहीं हैं ? ____ मैं उनकी तरफ देख उठा। कोई और ऐसी बात कहता तो मैं उसे अपना अपमान ही समझता । लेकिन न उनके चेहरे पर कोई अवज्ञा का भाव था, न शब्दों में वैसी ध्वनि । मैंने कहा, "बेशक कहानी लिखना मैं अपना काम क्यों बनाने लगा । पर कोई कारण नहीं होना चाहिए कि मैं कहानी न लिख सकूँ।" उन्होंने कहा, "बेशक कोई कारण नहीं हाना चाहिए। लेकिन,
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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