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________________ कहानीकार आजकल कहानी की धूम है और समय मेरे पास खाली है। वह रीता समय मुझे भारी हो-हो आता है। नहीं जानता, उसे कैसे काढूँ। काम मेरे लिए जरूरी नहीं है, क्योंकि पैसा काफी है। इसलिए जो चीज जरूरी मालूम होती है, वह नाम है। नाम अब मैं कैसे पाऊँ ? विना काम नाम कैसे हो ? लेकिन मैंने कहानी की धूम सुनी है और सोचता हूँ, कहानी लिखू। इसमें काम ज्यादा माँगा नहीं जायगा और नाम हो ही जायगा। __पर क्या लिखू ? कैसे लिखू ? पढ़ा-लिखा तो मैंने बहुत है और मैं जानता हूँ, मैं विद्वान हूँ। मैंने किस के लिए अवकाश छोड़ा है कि वह न जाने, मैं विद्वान् हूँ। फिर भी विद्वत्ता ठीक वक्त पर अलग धरी-सी रह जाती है, काम आने से बचती है। अब कहानी लिखने को तत्पर होकर जो मैं बैठ गया हूँ तो जान पड़ता है, मेरी विद्या मेरे चारों ओर चक्कर लगाती हुई घूम रही है; पकड़ में नहीं आती कि कलम को गति दे। , . सो कलम लिये-लिये मैं बैठा रह गया। एक वाक्य ज्यों-त्यों लिखा, फिर उसे काट दिया। थोड़ी देर बाद एक और भी लिखा, उसे भी कटना पड़ा । विचार बहुतेरे सिर में चक्कर मारते रहे पर
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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