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________________ पानवाला ५७ बिलकुल नहीं बहा देती और जा सकेगा। मैंने इतनी बातें इसलिए कर ली कि वह अब दिल्ली छोड़कर जा रहा है ही, और वहाँ न आने का वचन दे चुका है। आयगा तो मैं इसकी मरम्मत करवा दूंगा। पर पा नहीं सकेगा। ऐसी हिम्मत इस आदमी की मालूम नहीं देती और इन बातों में झूठ बोल रहा हो, ऐसा बिलकुल नहीं मालूम होता। वह दो-तीन बीड़े मेरे यहाँ छोड़कर चला गया | मैंने बहुतेरा कहा, पर वह माना ही नहीं। बहुत कहा तो कहने लगा, “इन्हें यहीं पड़े रहने दीजिएगा, सूख जायँगे। आपका कुछ हजे नहीं करेंगे। हर्ज करें तो फेंक दीजिएगा।" इसका उत्तर मैं क्या दे सकता था। खाने तो मुझे थे नहीं, ज्यादा बढ़कर फेंक देना भी ठीक नहीं होता । वापिस वह लेता था नहीं । मैं रखने को लाचार हो गया । शुरू में तो पैसे लेने से उसने इन्कार किया, लेकिन फिर पैसे ले लिये और चला गया । :४: हमारे घर में कभी-कभी 'प्वाइन बिनारिस' का जिक्र श्रा उठता था, और हम लोग उस पर जी खोलकर हँसते थे। उसकी चाल-ढाल, रहन-सहन पर भी खूब विनोदपूणे आलोचना हुआ करती थी। इस तरह के काम में तो उसकी याद काम आ जाती थी, विशेष मुझे उसका कुछ स्मरण नहीं रह गया था। उसकी जरूरत ही क्या थी ? समय के प्रवाह में वह वात आई-गई होती जाती थी । जैसे राह चलते कभी एक तमाशा दीख गया था,एक मिनट खड़े होकर हमने देख लिया, और फिर आगे बढ़ते चले आये । वह अशुभ ग्रह की भाँति फिर कभी हमारे रास्ते आयेगा और उसको काटता हुआ अपनी राह चला जायगा, ऐसी दुराशा हमें न थी। एक रोज बड़े तड़के देखें कि वह मौजूद ! मैं आवाज सुनकर
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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