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इक्के में दरजा नहीं है, इससे तीसरे में बैठता हूँ। इसे ये लोग 'एप्रिशियेट' नहीं कर सकेंगे। मैंने कहा"ड्योढ़ा ! हाँ;-नहीं, तीसरा ।"
और जब तक भीड़ को चीर कर अपनी राह बनाता हुआ टिकट की खिड़की पर पहुँचता हूँ, पाता हूँ, बटुआ साफ गायब है।
मैंने कहा, "चलो, यह भी ठीक ।"