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________________ इक्के में ४१ मैंने कहा, "हाँ, वही दिल्ली । और वहाँ किला है। और वहाँ चाँदनी-चौक है।" "चाँधनी-चौक !" __ "खूब चौड़ी, पक्की, हमवार सड़क है। ट्रामें चलती हैं। बड़ी रौनक है । तुमने नहीं देखो ?" "बाबू, हमारे चौक से बढ़िया ऐ ?" "अरे, दुनिया में एक है।" "अच्छा !” और वह अपने घोड़े की तरफ देखकर बोला, "चल बेटे, शाबाश !" ___ इस अबोध प्राणी के भीतर दिल्ली के सम्बन्ध में महत्त्व जगाकर अनुमान हुआ कि मैंने अपना भी महत्त्व बढ़ा लिया है। जैसे सचमुच दिल्ली में रहना मेरी अपनी निज की ऐसी विशिष्टता है कि उसके बल पर अनदिल्ली वालों से मैं अनायास ही बड़ा हो जाता हूँ।...छिः छिः, मैं सोचता हूँ आदमी आदमी है कि जानवर है। ___मैंने कहा, "भई, हमको बताते चलो कि रास्ते में कौन क्या है, कौन क्या ? हम बनारस में नये हैं। और बनारस जितना पुराना शहर है उतना दिल्ली क्या, कोई भी नहीं है।" ___ उसने कहा, "बाबू,...!' आगे उसने वाक्य को पूरा न किया, और मैंने अनुभव किया कि बनारस को दिल्ली के आस-पास पहुँचा देखकर बनारस के सम्बन्ध में अधिक उल्लास उसमें शेष नहीं रहता, कुछ लज्जा का भाव ही आ उठता है। "बाबू, बनारस...” कहकर वह नीची निगाह से अपने घोड़े को देख उठा, और हाँकने लगा। देखो जी, यह अहङ्कार भी क्या है ! यह मुझको तुम से, या सुमको मुझ से, बड़ा बना देकर ही समाप्त नहीं होता। यह चीजों को, शहरों को, नामों को, शब्दों को भी एक-दूसरे के सामने ऊँचा
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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