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________________ इक्के में उसने कहा, "बाबू, दस बरस हुई गए, तबहिं से यह जिनावर हमारे पास है । कबहुँ इन्ने दगा नहीं दई, वफादार जिनावर है ।" कहकर, घोड़े को जो धीमा होता जा रहा था, गाली देकर घुमा कर एक कोड़ा जमाया, “अत्तेरे साले..." मुझसे कहा, "बाबू, पूरे दस साल हुई गए। और इहाँ पीढ़ीदर-पीढ़ी रहत आ रहे हैं । परि, जबहुँ से जा इक्का में परे हैं जेइ जिनावर है।" और मैं इक्के के बीच में बैठा सड़क पार करता हुआ रेल के स्टेशन के निकट खिंचा हुआ जा रहा था । ...क्यों जी, य' क्या है ? अभी बनारस, अभी टिकट लिया, रेल में बैठे, और कल दिल्ली और आज बनारस ? क्यों रोज ही रोज एक ही अपने स्थान पर नहीं ? और क्यों वहीं पूरी तरह तृप्ति नहीं ?...पर, किस लिए एक जगह तृप्त रहा जाय ?...तृप्त ही क्यों रहा जाय ? क्यों न यहाँ से वहाँ भागते फिरे जाय, और एक दिन आये कि जहाँ हो वहीं ठण्डे होकर ढेर हो जायँ ? आखिर यही तो होना है-फिर क्या नहीं, और क्या हाँ। और यह रेल भी तमाशा है । फक-फक करती हुई आकर खड़ी हो जाती है, और कहती है-'श्राओ लोगो, यहाँ से वहाँ चलो।' और पाँच-दस मिनट बेचारी चुपचाप प्रतीक्षा में खड़ी रहती है, और लोग जो आते हैं उन्हें अपने पेट में लेकर फक-फक करती हुई फिर चल पड़ती है। और कुछ काम ही नहीं है इसे, यही करती रहती है। हर जगह यही कहती है-'यहाँ से चलो वहाँ।' और लोग इसी स्थानान्तरित होते रहने को कहते हैं-'हम काम कर रहे हैं।' इसीकी परिभाषा बनाकर कहते हैं-'हम व्यापार कर रहे हैं, व्यवसाय कर रहे हैं,-प्रचार कर रहे हैं. आन्दोलन कर
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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