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व' गँवार
विनोद ने कहा, “आप अच्छा-बुरा कहते हैं। मैं नहीं कहता । आदमियों में कौन अच्छा, कौन बुरा ? सब अच्छे सब बुरे । सब ही अपनी-अपनी तरह के हैं। हर एक वह है जो है, अपनी तरह का एक है । हर कोई मैं नहीं हूँ । और हम सब वह नहीं हैं । — उनमें श्रेणियाँ करने लगें तो उतनी करनी होंगी जितनी उनकी संख्या । फिर उनमें ऊँच-नीच भी न होगा । - अच्छाई-बुराई है । अर्थात् अच्छाई-बुराई, यों न हो, जीवन की चेष्टा का जन्म है । कुछ को हरा कर अच्छाई अपनाने का उद्देश्य लेकर आदमी में चेष्टा का जन्म है । कुछ को हराकर दबा देना होगा, और, कुछ और तक उठ कर उसे पा लेना होगा । यह न हो, यद्यपि अत्यन्त वास्तव में यह नहीं फिर भी हमारी समझ के लिए ऐसा न हो, तो जीवन का अर्थ ही विलुप्त हो जाय, हम जी न सकें । - इस तरह अच्छाई बुराई है । — पर अच्छे-बुरे होने को कोई जगह नहीं है । अच्छाई-बुराई को अच्छी तरह समझ देखें तो अच्छा-बुरा मान कर काम चलाने की आदत से छूटें, उस प्रकार की आवश्यकता से ऊपर हो जायँ । आदमी ही अच्छा-बुरा होने लग जाय, तो देव-दानव किस लिए हैं ? - इसलिए, कि हम भूल न करें
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