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जैनेन्द्र की कहानियाँ [छठा भाग ]]
जवाब में मिसरानी ने जोर-जोर से पुकारकर दुहाइयाँ दीं -- कि भगवान् उसे अभी उठा ले जो उसने किसी का कोई बटुआ देखा भी हो ।
१०
मिसरानी का पक्ष लेने वाला एक पड़ोस का नौकर बोला, "बाबूजी, बहूजी नाहक हैरान कर रही हैं। उस बिचारी के बाबू इस वक्त हैं नहीं, इसी से तो ! ओ री ओ ! दिखा क्यों नहीं देती है ? लो बहूजी ! उसकी तलाशी ले लो, नंगा-झाड़ा ले लो। इसके आगे उसकी जान तो नहीं ले सकतीं ?"
यह कहकर उस आदमी ने मिसरानी का हाथ पकड़ लिया, कहा, “दिखा री ! तैने कहाँ क्या छिपा रक्खा है ?"
कहने के साथ उसने मिसरानी की धोती का छोर छुआ, देखते-देखते मिसरानी ने अपने ऊपर आया हुआ धोती का पल्ला अलग फेंक दिया और सिर्फ चोली पहिने हुए खुले सिर चुनौती के साथ कहने लगी, "देख लो, जो कहीं मेरे पास कुछ हो ।"
उस आदमी ने कहा, "सब दिखा दे, जो इन बहूजी को बिसवास हो जाय ।"
कहकर वह आदमी और मिसरानी भी उद्यत हुए कि चोली और बाकी धोती भी खींच कर अलग कर दी जाय । श्रीमती जी डाँट कर और हाथ से उस आदमी को पकड़ कर दूर कर दिया । कहा, "बदमाश ! हया नहीं है ? ( औरों से ) तुम लोग क्या देख रहे हो ? यहाँ कुछ तमाशा है ? जाओ ! और सुनो ए रतना और बिहारी इसको यहीं पकड़े रहना मैं आती हूँ। आऊँ तब तक छोड़ना नहीं ।" कहकर श्रीमती ने सबको वहाँ से दुत्कार कर दूर कर दिया । मिसरानी धम से बैठ कर माथा पीटने और दुहाइयाँ देने लगी । और श्रीमती जी उसे उसी हालत में छोड़ कर चली गई ।
मेरी इच्छा हुई कि मैं बीच में पड़ कर मिसरानी को छुटकारा