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________________ १८० जनेन्द्र की कहानियाँ [छठा भाग] भाई-बहिन और माँ-बाप से बिछुड़ कर काँग्रेस के इस बंजर काम में पड़े हो ! अपनी सूरत भी कभी शीशे में देखते हो ? ऐसी अपने से क्या दुश्मनी ? ब्याह करो और अपने लायक बनो। सुनते हो ? पर अय्यर है कि मीठी मुस्कराहट से ही सब कड़वी बातों का जवाब दे देता है। ___ पर अय्यर का बखान छोड़ें क्योंकि बखान का वहाँ अवसर कहाँ था । हज़रत थे तरबतर, सिर पर टोपी तक नहीं थी, छतरी की तो पूछिये क्या ? पैरों की चप्पल से उछटी कीचड़ की छीटों से धोती रंगीन हो रही थी मैंने कहा, "अरे अय्यर ! आओ, श्राओ।''अजी आना, देखना यह कौन हैं।" ___अय्यर ने हाथों के कागज़ में होशियारी से लिपटे हुए बण्डल को अलग रखा और सिर के बालों को सूत कर पानी निचोड़ा। कहा, "तेज़ बारिश है।" मैंने कहा, "और तुम क्या कम तेज़ हो कि ऐसी बारिश में निकल पड़े घर से !" ___ मालूम हुआ कि जनाब आ रहे हैं एक गाँव से, जो दस मील है । चले तब बारिश न थी। यह धोती आज सबेरे ही तैयार हुई । अपनी ही कती-बुनी है, बहिन को आज ही उपहार-रूप भेज देने की इच्छा थी, इसलिए शहर चले आए हैं । मेरी जगह रास्ते में पड़ती है, सो इधर ही मुड़ पाए । ___मैंने धोती देखी, अन्दर से श्रीमती जी ने भी आकर देखी और पसन्द की। लेकिन उनको अय्यर की यह बात बिल्कुल पसन्द नहीं कि वह चाय नहीं पीते । उन्होंने कहा, "चाय अभी दो मिनट में तैयार होती है। इतने चाहो तो नहा डालो और कपड़े बदल लो।"
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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