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________________ चोरी लक्खू को अब चारों-तरफ़ सूना-सूना दीखने लगा। दोनों जून रोटी के लाले थे ही, अब आसरे को ठौर भी न रहा। जिस मिट्टी और फूस के झोंपड़े में अपनी बहू, तीन बच्चे, बुढ़िया माँ और एक दूर की अनाथ विधवा भाभी को लेकर वह गुजारा करता था, वह आज नीलाम पर चढ़ा दिया गया है। तीन साल पहले बीज के लिए जो आलू उसने महाजन से उधार लिये थे, उनकी कीमत मय सूद-दर-सूद वसूल करने के लिए बेचारे महाजन को झोंपड़ी खाली करा लेना पड़ा है । महाजन को इसके लिए कौन टोक सकता है ? उनके पास मजिस्ट्रेट साहब की डिग्री है। और डिग्री यों ही मुफ्त थोड़े ही मिल जाती है । उसके लिए सबूत पहुँचाना पड़ता है और अपने माफिक फैसला लेना होता है तथा खर्च करना पड़ता है । यह ठीक है कि फैसला और सबूत ये दोनों ही पैसे खर्चने से मिल सकते हैं, पर पैसा खर्चना भी तो कोई कम बात नहीं है,। जब पैसे से मनमाना स्वर्ग और पुण्य मिल सकता है, तो न्याय भी अगर मिले तो क्या हर्ज है ? हम समझते हैं कि संसार में ऐसी कोई चीज नहीं रहने देनी चाहिए, जिसको उचित कीमत पर प्रत्येक व्यक्ति प्राप्त न कर सके और कदाचित् सभ्यता १६८
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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