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भद्रबाहु __ नारद, "भय है तो निशंक क्या बना हुआ है रे ? भद्रबाहु निर्भय होता जा रहा है, इसकी भी खबर है ?" ___इन्द्र ने कहा. "भगवन्, मैं अब खबर लेता हूँ।"
नारद, "हाँ, अपने कर्त्तव्य की याद और अधिकार की रक्षा करते रहना, समझे ?"
अनन्तर नारद बिदा हुए, और इन्द्र ने सदा की भाँति कामदेव को बुला भेजा।
कामदेव स्वर्ग से अनुपस्थित थे, इससे रति आकर उपस्थित हुई और उन्होंने इन्द्र की आज्ञा पूछी। __इन्द्र ने हँस कर कहा, “देवि, देव कंदर्प किस कारण अनुपस्थित हैं ?" ___ रति ने कहा कहा, "भगवन, पृथ्वी पर उन्हें आज कल काफी काम रहता है।"
इन्द्र ने पूछा, “देवि, तुम्हें वह छोड़ ही जाते हैं ?" रति ने कहा, "भगवन् , पृथ्वी पर सम्प्रति मनसिज की ही आवश्यकता है ! देह-धर्म से विमुखता का प्रचार होने के कारण मुछे अब सदा उनके साथ जाना नहीं होता है।" ____ इन्द्र ने कहा, "इस बार देवि, तुम्हें साथ जाना होगा। विषम अवसर आया है। भद्रबाहु के सम्बन्ध में सुना है कि उनमें विमुखता नहीं है । इससे अप्सराओं से काम नहीं चलेगा। सती पत्नी की महिमा ही काम आयगी।" __ रति ने कहा, “चित्त लुभाने का काम, देवराज, अप्सराओं का है। वह तुच्छ काम क्या मेरे ऊपर आयगा ? वैज्ञानिक पक्ष में ही मेरा उपयोग है। दूसरा हल्का काम मुझ से न होगा, भगवन् ! सृष्टि से जिस का सीधा सम्बन्ध नहीं है, जो कार्य केवल मन के