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हवा-महल
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मन्त्री, "महाराज की आज्ञा के अनुसार ही हो रहा है । कुछ काल बाद महाराज देख कर प्रसन्न होंगे। अभी काम का आरम्भ है ।"
महाराज, "याद आता है कि हमने सात मन्जिलों का महल कहा था । हम आसमान की तरफ़ हवा में उठना चाहते थे । आप लोगों ने यह क्या किया है ?"
इस पर महाराज के सामने इंजीनियर आये नक्शे नवीस आये, ठेकेदार आये । सबने समझा कर बताया कि महल ठीक हुजूर की मनशा जैसा होगा । पर महाराज की समझ में उसमें से थोड़ा भी न आ सका । उन्होंने अधीर भाव से पूछा, "आप सब लोग बतायें कि मैं महल में रहता हूँ, या आप लोग रहते हैं ?"
यह सुनकर मन्त्री लोग चुप रह गये, कुछ जवाब नहीं दिया । महाराज ने कहा, “अगर मैं कहूँ कि आप से अधिक मैं महल को जानता हूँ, तो क्या आप इसका विरोध कीजिएगा ?"
मन्त्री लोग इस वात का भी कुछ जवाब नहीं दे सके । तब महाराज ने कहा, "महल ज़मीन से ऊँचा होता है कि नीचा ? चुप क्यों हैं, बताइए ?”
इस पर मन्त्रियों ने समझाना चाहा कि - महाराज - लेकिन बीच में ही उन्हें रोक कर महाराज कहने लगे, "नहीं, वह मुझे मत समझाइए। आप मुझे यह नहीं समझा सकते कि स्वर्गीय कुछ भी ऐसे बन सकता है। हमारा ख्याल है कि स्वर्ग की कल्पना ऊँची उठेगी और जो पाताल में है, वह नरक है । आप लोगों की बातें समझदारी की हैं और मैं जानता - बूझता कम हूँ । लेकिन महल जानता हूँ । धरती को इतना गहरा खोद कर श्राप लोग जो मेरे लिए बनाओगे वह सचमुख महल होगा, ऐसा विश्वास