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एक दिन
को तुड़-मुड़कर लाल-लाल रेखाओं से खिंचा कुछ बना था, जो शाप के चक्र की भाँति मुझे भरपूर देखता वहाँ बैठा रहा। ___मैंने अपनी जेब का कार्ड निकाल फाड़ फेंका, और मैं कुरसी पर बैठ गया। निरुद्देश्य सामने देखने लगा, और देखने लगासामने वह दीवार, सफेद, फक, खड़ी-की-खड़ी ही रही, और उसके आरपार मुझे कुछ भी दिखलाई नहीं दे सका !