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________________ वह बेचारा २१३ दूसरे आदमी ने कहा, "यह तो बड़ा तेज साँप है ?" 1. "बाबू , इसके काटे का इलाज दुनिया में नहीं र नाग है, बाबू।" मैं मुँह दुबकाए मानो एक ओर से अपने को निगल हा जाता हुआ पड़ा था। तीसरे आदमी ने फरमाइश की, “मदारी, यह तो चुप हो गया। इसको फिर उठाओ।" ___मदारी ने अपनी बीन की नोक से निष्क्रिय पड़े हुए साँप की पूँछ में कई टहोके दिये । साँप तैश में काँप-काँप गया । पर वह चुप ही पड़ा रहा, उठा नहीं। सँपेरे ने फिर चोट देकर कहा, "उठ बेटा !" साँप को ऐसा क्रोध आया कि वह अपने ही को काट डाले । सँपेरे ने फिर उसके फण पर चोट देकर पुचकारकर कहा, "उठो बेटा।" और बेटा, आखिर कब तक न उठता। जब असह्य हो गया तब वह उठा । उठकर वैसे ही फण फैलाया। वैसे ही चारों ओर को घुमाया। वैसे ही फुसकार भरी। वैसे ही जीमें निकाली। Pी शरीर को तन्नाया। क्रोध का पूरा अभिनय उसने किया। उसने जाना कि तमाशाई यही चाहते हैं और यही किये उसे छुट्टी है। लोगों को बड़ा आनन्द आया । वे सर्प के पक्ष में बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने माना कि सपे निस्संशय विकट विषधर है। उनको ऐसा आनन्द हुआ जैसे कोई महापुरुष उन्होंने देखा हो। ऐसा महापुरुष जिसकी महत्ता की झुलस उन्होंने अपने को नहीं लगने दी है, इसीलिए जिसकी महत्ता उन्हें सानन्द स्वीकार है।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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