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एक गो
१८५ लेकिन रुपये हीरासिंह गाँव भेज चुका था, और उसमें से काफ़ी रकम वहाँ के मकान की मरम्मत में काम आ चुकी थी। हीरासिंह फिर चुप रह गया।
सेठजी ने कहा, "क्या कहते हो ?" हीरासिंह क्या कहे ?
सेठजी ने कहा, "अच्छा तनख्वाह में से रकम कटती जायगी और जब पूरी हो जायगी, तो गाय अपनी ले जाना ।" __ हीरासिंह ने सुन लिया और सुनकर वह अपनी ड्योढ़ी में
श्रा गया। उस ड्योढ़ी के इधर हवेली है, उधर शहर बिछा है, जिसके पार खुला मैदान है और खुली हवा है । दोनों ओर टुक-देर शून्यभाव से देख कर वह हुक्का गुड़गुड़ाने लगा। __ अगले दिन सबेरे से ही एक प्रश्न प्रकार-प्रकार की आलोचनाविवेचना का विषय बना हुआ था । बात यह थी कि सबेरे-ही-सबेरे बहुत-सा दूध ड्योढ़ी में बिखरा हुआ पाया गया। उससे पहली शाम सुन्दरी गाय ने दूध देने से बिल्कुल इन्कार कर दिया था। उसे बहलाया गया, फुसलाया गया, धमकाया और पीटा भी गया था। फिर भी वह राह पर न आई थी। अब यह इतना सारा दूध यहाँ कैसे बिखरा है ? यह यहाँ आया तो कहाँ से आया ? ___लोगों का अनुमान था कि कोई दूध लेकर ड्योढ़ी में आया था, या ड्योढ़ी में जा रहा था, तभी उसके हाथ से यह बिखर गया है। अब वह दूध लेकर आने वाला आदमी कौन हो सकता है ? लोगों का गुमान यह था कि हीरासिंह वह व्यक्ति हो सकता है । हीरासिंह चुपचाप था । वह लजित और सचमुच अभियुक्त मालूम होता था । हीरासिंह के दोषी होने के अनुमान का कारण यह भी था कि हवेली के और नौकर उससे प्रसन्न न थे। वह नौकर के ढंग का