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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग] सेठ ने कहा, "कैसी गाय है ?" हीरासिंह ने कहा, "गौ तो ऐसी है कि माँ के समान है। और दूध देने में कामधेनु । पन्द्रह सेर दूध उसके तले उतरता है।" सेठ ने पूछा, "तो उसका मालिक किसी शर्त पर नहीं बेच सकता?" हीरासिंह, “उसके दो सौ रुपये लग गये हैं।" सेठ, "दो सौ ! चलो, पाँच हम ज्यादा देंगे। पाँच रुपये और ज्यादा की बात सुनकर हीरा को दुःख हुआ। वह कुछ शर्म से और कुछ ताने में मुसकराया भी। सेठ ने कहा, “ऐसी भी क्या बात है। दो-चार रुपये और बढ़ती दे देंगे। बस ?" हीरासिंह ने कहा, "अच्छी बात है । मैं कहूँगा।" हीरासिंह को इस घड़ी दुःख बहुत हो रहा था। एक तो इसलिए कि वह जानता था कि गाय को बेचने के लिए वह राजी होता जा रहा है । दूसरे दुःख इसलिए भी हुआ कि उसने सेठ से सच्ची बात नहीं कही। सेठ ने कहा, "देखो, गाय अच्छी है और उसके तले पन्द्रह सेर दूध पक्का है, तो पाँच-दस रुपये के पीछे बात कच्ची मत. करना।" ___ हीरासिंह ने तब लज्जा से कहा, "जी, सच्ची बात यह है कि गाय वह अपनी ही है। सेठ जी ने खुश होकर कहा, "तब तो फिर ठीक बात है । तुम तो अपने आदमी ठहरे। तुम्हारे लिए जैसे दो-सौ वैसे दोसों पाँच । गाय कब ले आओगे ? मेरी राय में आज ही चले जाओ।" हीरासिंह शरम के मारे कुछ बोल नहीं सका । उसने सोचा था
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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