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कामना पूर्ति कैसे चलता है। दो पैसे का सिलसिला हो जाय, तो मैं भी भगवान् को याद करने का समय पाजाऊँ ।" ___महात्मा गम्भीर वाणी में बोले, "कुछ न पाकर अपना सब दे सको, तो सब पा जाओगी।" .. पण्डितानी शास्त्रों की गूढ बात रोज ही सुना करती थी। समझती थी कि वे रीती थैली हैं। विश्वास से फूल जाती हैं, भीतर हाथ डालो तो कुछ भी नहीं मिलता। बोली, “महाराज, श्राये साल सिर पर एक प्राणी बढ़ जाता है । इधर ये शास्तर के सिवाय दूसरे किसी काम का नाम नहीं लेते। ऐसे कैसे काम चलेगा? आपको बड़ा महात्मा सुनती हूँ। तो मेरा तो चोला बदल दो, तो बड़ा उपकार हो।"
शिष्य ने कहा, "धन चाहती हो ?"
"हाँ महाराज, मैं कुछ और नहीं चाहती। फिर चाहें, दिन-रात ये शास्तर में रहें । मुझे कुछ मतलब नहीं। धन हो और ये बालक न हों।"
महात्मा बोले, “वालक उसी के हैं जिसका सब है। ये दे दो, वह ले लो।"
शिष्य ने कहा, "महात्माजी पूछते हैं कि बालकों को भगवान् के नाम पर तुम लोग छोड़ सकते हो ?"
पण्डित और पण्डितानी इस पर एक दूसरे को देखने लगे। बोले, "महाराज, बालकों को छोड़ना कैसे होगा? और भगवान् के नाम पर उन्हें कहाँ छोड़ा जायगा ?"
महात्मा बोले, "भगवान् सर्वव्यापी हैं। अपने से छोड़ना उनके नाम छोड़ना है।"