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धरमपुर का वासी
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भट्टियाँ और ये चिमनियाँ यहाँ कौन ले आया है और किसलिए लाया है ?"
शहर में अब जनरल काम के लोग भी हुआ करते हैं । वे कोई खास काम के नहीं होते । वे बे - मेहनत रहते हैं । इसलिए वे मजे से रहते हैं । एक ऐसे ही बन्धु आ रहे थे । उन्हें नई बात की टोह रहती है । इस नई तरह के प्राणी को देखकर उनमें चैतन्य जागृत हुआ । पुराने ग्रन्थ, चित्र, मूर्ति और इसी तरह की अन्य वस्तुओं का पता रखते हैं और यदा-कदा सौदा भी करते हैं। इस कारण वे विद्वान् भी हैं। उन्होंने कहा, "तुम पुरातन काल के आदिवासी प्रतीत होते हो । श्रो, मेरे साथ चलो ।”
करमसिंह ने कहा, "हाँ, मैं यहीं रहा करता था ।" धीमान् ने पूछा, "यहीं कहाँ ?”
" इसी धरमपुर में ।”
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"धरमपुर ! ओ, तुम्हारा मतलब इसी दामपुर से है । तो प्राचीन काल में धरमपुर भी यही था - "
बन्धु ने यह बात नोट बुक निकाल कर नोट की । करमसिंह ने आश्चर्य से कहा, "दामपुर ! धरम की जगह दाम कैसे गया ?"
उन धीमान् बन्धु ने करुणा भाव से कहा, “तुम अधिक बाहर रहे हो। इस से कम जानते हो । धर्म की जगह कहाँ है ? सब कहीं दाम ही तो है । ठहरो नहीं, आओ ।"
करमसिंह खोया-सा होकर उन कुशल बन्धु के साथ-साथ बढ़ लिया । वहाँ पहुँचकर उसे आदर मिला और भोजन भी मिला । अनन्तर पेंसिल और डायरी साथ लेकर वह विद्वान् इस प्राचीन ग के प्राणी से जानकारी प्राप्त करने लगे । विदेश देश के पत्रों