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________________ लाल सरोवर १२५ गाँव-वालों ने अशर्फियों पर हाथ डालने से पहले उस साधु की मरम्मत बनाई।... ... . उधर वह वैरागी अलग खड़ा होकर ऊपर आसमान में निगाह जमाकर कह रहा था, "हे भगवन् ! हे भगवन् !" वह प्रार्थना कर रहा था, "अनेकानेक अनर्थों का मूल यह स्वर्ण कहाँ मुझ में आ गया ! हे भगवन्, मुझको ऐसा कठोर दण्ड तुमने क्यों दिया ?" . मङ्गलदास को आगे बढ़कर शिक्षा और दण्ड देने के काम में चन्दन प्रमुख था। चन्दन की सीख में आकर लोगों ने यह भी तय किया था कि जितना सोना उस गुरु के पास से मिलेगा वह सब बेचारे वैरागी को सौंप दिया जाना चाहिए। गाँव-वाले यह तय करके आये थे । लेकिन जब मङ्गलदास से निपटकर लोग अशफ़ियों के ढेर को सम्मानपूर्वक वैरागी को समर्पण करने के विचार से चले तो क्या देखते हैं कि वहाँ तो एक भी अशर्फी नहीं है, बल्कि गुलाबी फूलों का एक सरोवर-सा लहलहा रहा है ! वे गुलाबी फूल हृदय के आकार के हैं और मानो मुकुलित होने की बाट देख रहे हैं ! जब गाँव-वालों ने यह देखा तो उनको अचरज हुआ और वैरागी में उन्हें सच्ची भक्ति हो गई। पर वैरागी ने कहा, "तुम लोगों ने जिस दोष के लिए उस बिचारे साधु को बाँधकर डाल दिया है उस दोष का तो अब मूल ही न रह गया इसलिए तुम्हें चाहिए कि अब जाकर तुम उन्हें खोल दो।" चन्दन ने कहा, “वह आदमी चालाक है, ढोंगी है।" वैरागी ने कहा, "जिस चीज़ के लिए हम सब चालाक और
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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