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जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग] बैसगी सोने की मोहरों की बात सुनकर और उन्हें सामने देखकर हैरत में रह गया था। उसको कुछ जवाब नहीं सूझा । .
चन्दन ने कहा, "वैरागी, तू हमारी बात झूठी मानता है। लेकिन हम सच कहते हैं।" .
थोड़ी देर वैरागी गुम-सुम खड़ा रहा । लेकिन फिर वहीं एकदम गिर कर हाथों में मुँह लेकर रोने लगा। . . सुमेर और चन्दन वैरागी की यह हालत देखकर अचकचा गए । उनकी कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें। .. वैरागी ने कुछ देर बाद ऊपर को मुंह उठाकर आसमान में देखते हुए रोकर प्रार्थना की, "हे ईश्वर, हे मालिक, अब यह सजा सुम मुझे किस पाप की देते हो ? सोने को मेरे तन और मन से कब बिलकुल छुड़ा दोगे ? यह. मैं क्या देखता हूँ, कि अब भी सोने से मेरा पीछा छूटा नहीं है। भगवन् , क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं जान दे दूँ ? नहीं तो अब से कभी सोने की बात मेरे साथ लगी हुई मुझे नहीं सुनाई देनी चाहिए।" . ___ इस तरह वह कुछ देर प्रार्थना करता रहा । फिर चन्दन और सुमेर के साथ वापिस चल दिया। ..
चन्दन और सुमेर ने देखा कि अब वैरागी के चलने पर मोहरें नहीं बनती है; बल्कि एक सचमुच का फूल बन जाता है जो गुलाबी रंग का होता है, नन्हे हृदय के आकार का। ....... __ मंगलदास के डेरे पर पहुँच कर इस बार सुमेर ने एक भी मोहर. अपने गुरु को नहीं दी। कहा, “अब वैरागी के चलने पर अशी नहीं बनती हैं।" ... मंगलदास यह सुनकर नाराज हो गया और दुर्वचन कहने लगा। इस पर चन्दन और, सुमेर दोनों ही बिगड़ गए और ने
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