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लाल सरोवर कोदिन की कुटिया पर गये और देखा कि वह मर गई है। तब उन्होंने मंगलदास को कहा कि, "कपड़े-लत्ते जमा करके जला दो। इस फँस की कुटिया को भी जला दो और इस कोदिन के शरीर की क्रिया-कर्म का बन्दोबस्त करो।" ___ मंगलदास को यह बहुत बुरा मालूम हुआ। लेकिन वह क्या कर सकता था। आखिर उसने खर्चे का बहाना किया। कहा कि, "महाराज, मैं तो इधर आपके पास रहता हूँ और कमाने की ओर से मैंने मुँह मोड़ लिया है। देखिये, नगर में जाकर किसी से कहूँगा।"
वैरागी सुनकर हँस दिया और बिना कुछ कहे मुड़कर नगर की तरफ चल दिया।
मंगलदास बड़ा खुश हुआ। क्योंकि इस समय नगरवासी तथा और कोई पास नहीं था और वैरागी के चलने पर हर कदम पर जो अशी बनती सब वही उठाता और बटोरता जाता था।
क्रिया-कर्म के अनन्तर शिवालय पर आकर मंगलदास ने कहा, "महाराज, अब यहाँ से अन्यत्र पधारना चाहिए। यह नगर अापके योग्य नहीं रहा है।" ___ मंगलदास सोचता था-'यहीं रहकर मैं जायदाद बनवाऊँगा तो सब लोग ईर्ष्या करेंगे और कहेंगे कि यह रुपया इसने कहाँ से पाया ? तब आखिर इन वैरागी को भेद मालूम हो जायगा । तब मेरे पास कुछ नहीं रह पायगा।' इसीलिए वह सोचता था-'यहाँ से दूसरी जगह जाकर मैं बड़ी हवेली बनवा लूँ या और एक कोठरी में इस वैरागी को जगह दे दूंगा। बस वहाँ श्रद्धालु जन आया करेंगे और भेंट-पूजा भी चढ़ावेंगे। ऐसे वैरागी से मुझको खूब आमदनी हुआ करेगी।