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किसका रुपया
७६ माँ ने पूछा, "क्यों रे, क्या हुआ है जो ऐसा हो रहा है ?" रमेश नहीं बोला और बीच बात उठकर दूसरे कमरे में खाट पर पैर लटकाकर अँगुली के नहों को मुँह से कुतरता हुआ बैठा रह गया।
माँ फल की तश्तरी लेकर आई । कहा, "बात क्या है ? मास्टर ने मारा है ?"
प्यार से रखे माँ के हाथों को रमेश ने अपने कन्धे पर से अलग झटक दिया और जाने क्या बुदबुदाता रहा।
माँ ने चिरौरियाँ की, प्यार से पूछा, मुंह में छिला लुकाट ज़बरदस्ती दिया। पर रमेश किसी तरह नहीं माना। वह जाने ओठों-ही-श्रोठों में क्या बुदबुदाता था, त्यौरियाँ उसकी चढ़ी हुई थीं और कुछ साफ न बोलता था। होते-होते माँ को भी गुस्सा आ गया। उसने भी दोनों तरफ चपत रख दिये, और कहा"बदशऊर से कितना कह रही हूँ, लेकिन जो कुछ बोले भी। हर वक्त झिकाने के सिवाय कुछ काम ही नहीं, हाँ तो। बोलना नहीं है तो इस घर में क्यों आया था ? न आके मरे सामने, न कलेश मचे।" ____ रमेश इस पर टुक-देर तो वहीं गुम-सुम बैठा रहा । फिर खाट से मुंह उठा कर घर से बाहर होने चला।
माँ ने कहा, "कहाँ जाता है ? चल इधर ।" ।
पर रमेश चल कर उधर नही आया, आगे ही बढ़ता गया । इस पर जरा देर तो माँ अनिश्चित मान में रही, फिर झपटी आई
और सीढ़ी उतर दरवाजे से बाहर झाँकी, तो गली की मोड़ तक रमेश कहीं दिखाई नहीं दिया। माँ इस पर झींकती बड़-बड़ाती भीतर गई और सोचने लगी कि यह उन्हीं के काम हैं कि जरा