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जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] रमेश डरता-डरता पास आया । "हाथ फैलाओ।"
रमेश ने हाथ फैलाए। मास्टर ने हाथ के फुटे को कसकर दोतीन बार उसकी हथेली पर मारा और कहा, “जाओ, उस कोने में मुर्गा बनकर खड़े हो जाओ।"
रमेश क्लास का मानीटर था। मास्टर ने कहा, "सुना नहीं ? जाओ मुर्गा बनो।"
रमेश चलकर अपनी जगह आया और बस्ता खोलकर बैठ गया। ___ मास्टर ने यह देखा तो गरजकर कहा, "रमेश ! सुना नहीं हमने क्या कहा ? जाकर मुर्गा बनो।" __ जवाब में रमेश गुम-सुम बैठा रहा।
मास्टर तब अपनी जगह से उठकर आये और कान पकड़कर रमेश को खड़ा करते-करते दो-तीन चपत कनपटी पर रख दिये, फिर धकियाते हुए कहा, "निकल जाओ मेरे क्लास से।" __ रमेश क्लास से निकलकर चला। घर पर आया तो माँ ने पूछा, “क्या है ?"
रमेश चुप। "क्या है ? ले, ये सन्तरे-लुकाट तेरे लिये रखे हैं।" रमेश गुम-सुम बैठ रहा और कुछ नहीं छुआ।
माँ ने हँसकर कहा, "आज के पैसे का ऐसा क्या खाया था जो भूख नहीं लगी ? और हाँ, क्या आज स्कूल इतनी जल्दी हो गया ?"
जवाब में रमेश ने सबेरे मिला पैसा अपनी जेब से निकाला और तख्त पर रख दिया, बोला-चाला नहीं।