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खेल
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"हम वैसा ही लेंगे ।" "वैसा ही लो, उससे भी अच्छा ।"
"उसपै हमारी कुटी थी, उसपै धुएँ का रास्ता था ।" "लो, सब लो। तुम बताती न जाओ, मैं बनाता जाऊँ ।” " हम नहीं बताएँगे। तुमने क्यों तोड़ा ? तुमने तोड़ा, तुम्हीं बनाओ ।"
"अच्छा, पर तुम इधर देखो तो ।”
" हम नहीं देखते, पहले भाड़ बनाके दो ।"
मनोहर ने एक भाड़ बना कर तैयार किया। कहा, “लो, भाड़ बन गया ।"
" बन गया ?"
"हाँ ।"
" धुएँ का रास्ता बनाया ? कुटी बनाई ?” " सो कैसे बनाऊँ — बताओ तो ।”
"पहले बनाओ, तब बताऊँगी ।"
भाड़ के सिर पर एक सींक लगाकर और एक-एक पत्ते की ट लगाकर कहा, " बना दिया । "
तुरन्त मुड़कर सुरबाला ने कहा, "अच्छा, दिखाओ ।"
'सींक ठीक नहीं लगा जी', 'पत्ता ऐसे लगेगा' आदि आदि
संशोधन कर चुकने पर मनोहर को हुक्म हुआ
"थोड़ा पानी लाओ, भाड़ के सिरपर डालेंगे ।"" मनोहर पानी लाया ।
गंगाजल से कर पात्रों द्वारा वह भाड़ का अभिषेक चाहता था कि सुर्रो रानी ने एक लात से भाड़ के सिर को चूर कर दिया !
करना ही चकना -