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لاوا
जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग - यह मनोहर ने उसके पीठ पीछे से कहा और ऐसे कहा, जैसे वह यह प्रकट करना चाहता है कि वह रो नहीं रहा है। . "हम नही बोलते।" बालिका से बिना बोले रहा न गया। उसका भाड़ शायद स्वर्गविलीन हो गया। उसका स्थान और बाला की सारी दुनिया का स्थान, काँपती हुई मनोहर की आवाज ने ले लिया। ___ मनोहर ने बड़ा बल लगाकर कहा, “सुरी, मनोहर तेरे पीछे खड़ा है । वह बड़ा दुष्ट है । बोल मत, पर उस पर रेत क्यों नहीं फेंक देती, मार क्यों नहीं देती ! उसे एक थप्पड़ लगा-वह अब कभी कसूर नहीं करेगा।"
बाला ने कड़ककर कहा, "चुप रहो जी!" "चुप रहता हूँ, पर मुझे देखोगी भी नहीं ?" "नहीं देखते।"
"अच्छा मत देखो । मत ही देखो। मैं अब कभी सामने न आऊँगा, मैं इसी लायक हूँ।" ।
"कह दिया तुमसे, तुम चुप रहो । हम नहीं बोलते ।''
बालिका में व्यथा और क्रोध कभी का खत्म हो चुका था । वह तो पिघलकर बह चुका था। यह कुछ और ही भाव था । यह एक उल्लास था जो व्याजकोप का रूप धर रहा था। दूसरे शब्दों में यह स्त्रीत्व था।
मनोहर बोला, "लो सुरी, मैं नहीं बोलता। मैं बैठ जाता हूँ। यहीं बैठा रहूँगा। तुम जब तक न कहोगी, न उठ्गा, न बोलूँगा।"
मनोहर चुप बैठ गया । कुछ क्षण बाद हारकर सुरबाला बोली"हमारा भाड़ क्यों तोड़ा जी ? हमारा भाड़ बनाके दो !"
"लो अभी लो।'