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सुरबाला ने अपना पैर धीरे-धीरे भाड़ के नीचे से खींच लिया । इस क्रिया में वह सचमुच भाड़ को पुचकारती-सी जाती थी। उसके पैर ही पर तो भाड़ टिका है, पैर का आश्रय हट जाने पर बेचारा कहीं टूट न पड़े ! पैर साफ़ निकालने पर भाड़ जब ज्यों का-त्यों टिका रहा, तब बालिका एक बार आह्लाद से नाच उठी। __ बालिका एकबारगी ही बेवकूफ मनोहर को इस अलौकिक चातुर्य से परिपूर्ण भाड़ के दर्शन के लिए दौड़कर खींच लाने को उद्यत हो गई । मूर्ख लड़का पानी से उलझ रहा है, यहाँ कैसी जबदस्त कारगुजारी हुई है सो नहीं देखता ! ऐसा पक्का भाड़ उसने कहीं देखा भी है !
पर सोचा-अभी नहीं; पहले कुटी तो बना लें । यह सोचकर बालिका ने रेत की एक चुटकी ली और बड़े धीरे से भाड़ के सिर पर छोड़ दी। फिर दूसरी, फिर तीसरी, फिर चौथी । इस प्रकार चार चुटकी रेत धीरे-धीरे छोड़कर सुरबाला ने भाड़ के सिर पर अपनी कुटी तैयार कर ली। ___ भाड़ तैयार हो गया। पर पड़ोस का भाड़ जब बालिका ने पूरापूरा याद किया, तो पता चला एक कमी रह गई । धुआँ कहाँ से निकलेगा ? तनिक सोचकर उसने एक सींक टेड़ी करके उसमें गाड़ दी । बस, ब्रह्माण्ड का सबसे सम्पूर्ण भाड़ और विश्व की सबसे सुन्दर वस्तु तैयार हो गई। : : वह उस उजडु मनोहर को इस अपूर्व कारीगरी का दर्शन करावेगी, पर अभी जरा थोड़ा देख तो और ले । सुरबाला मुंह बाये
आँखें स्थिर करके इस भाड़-श्रेष्ठ को देख-देखकर विस्मित और पुलकित होने लगी। परमात्मा कहाँ विराजते हैं, कोई इस बाला से पूछे, तो वह बताये इस भाड़ के जादू में ।