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जनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] कहते चले गये । रामचरण खाट पर पड़ा आँख फाड़े उन्हें देख रहा था। जैसे वह कुछ न समझ रहा हो।
पिता ने वहीं से पत्नी को हुक्म देकर कहा, "लाना तो खाने को, देखें कैसे नहीं खाता है ?" _ दिनमणि खाना लेने गई और पिता ने पुत्र को कहा, "अब और तमाशा न कीजिए । हम समझते थे आप समझदार हैं। लेकिन दीखता है आप इसी तरह बाज़ आइएगा।"
रामचरण तत्क्षण न उठता दिखाई दिया तो कड़क कर वोले, "सुना नहीं अापने, या अब चपत लगे ?"
रामचरण सुनकर एक साथ उठकर बैठ गया। उसके मुख पर भय नहीं, विस्मय था और वह पिता को आँख फाड़कर चकित बना-सा देख रहा था।
खाने को थाली आई और सामने उसकी खाट पर रखदी गई । पर उसकी ओर रामचरण ने हाथ बढ़ाने में शीघ्रता नहीं की !
पिता ने कहा, "अब खाते क्यों नहीं हो ? देखते तो हो कि मैंने दफ्तर के कपड़े भी नहीं उतारे, क्या मैं तुम्हारे लिए कयामत तक यहीं खड़ा रहूँगा ? चलो, शुरू करो।"
रामचरण फिर कुछ देर पिता को देखता रहा ! अन्त में बोला, “मुझे भूख नहीं है ।" । __"कैसे भूख नहीं है ?" पिता ने कहा, “सबेरे से कुछ नहीं खाया। जितनी भूख हो उतना खाश्रो।"
रामचरण ने उन्हीं फटी आँखों से पिता को देखते हुए कहा, "भूख बिल्कुल नहीं है।"
पिता अब तक जन्त से काम ले रहे थे। लेकिन यह सुनकर