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जनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] में एक ओर खड़ी यह देख रही थी । उसके जाने पर बोली, "मिजाज तो देखो इस शरीर के । इतना भौंकवाया तब कहीं जाकर उठा है । और अब भी देखो तो मुंह चढ़ा हुआ है।"
अखबार रामरत्न के हाथ में ही था, बोले, “उसके नाश्ते-वाश्ते को निकाल रखो कि जल्दी स्कूल चला जाय। देर न हो। बच्चा है, एक रोज आँख नहीं खुली तो क्या बात है ?"
दिनमणि इसका उपयुक्त उत्तर देने को ही थी कि रामरत्न चलकर अपनी बैठक में आ गए और रूस-जर्मन मोर्चे का नया नक्शा अपने मन में बैठाने लगे। पर नक्शा ठीक तरह वहाँ जम नहीं सका क्योंकि जहाँ रोस्टोव चाहते हैं वहाँ रामचरण आ बैठता था । तब रामचरण पर उन्हें करुणा होने लगी। मानो वह अनाथ हो । माता है, पिता है पर जैसे उस बालक का फिर भी संगी कोई नहीं है । उन्हें अपने पर और अपनी नौकरी का क्षोभ होने लगा कि देखो वह लड़के के लिए कुछ भी समय नही दे पाते। घर में रहकर बालक पराया हुआ जा रहा है।
इसी समय सुनते क्या हैं कि अन्दर कुछ गड़बड़ मच उठी है। जाकर मालूम हुआ कि रामचरण (दिनमणि ने साहब बहादुर कहा था) नहाया नहीं है, न ठीक तरह मञ्जन किया है और मैं कहती हूँ तो बदलकर नया निकर भी नहीं पहिनता है ?
मैंने कहा, "निकर बदल लो, रामचरण ?" उसने कहा, "देर हो जायगी।" मैंने कहा, "श्राधी मिनट में क्या फर्क होता है, इतने के लिए माँ का कहना नहीं टाला करते भाई।"
रामचरण ने इस पर जाकर निकर बदल लिया और बस्ता लेकर चलने को तैयार हो गया।