________________
प्रात्मशिक्षण
४३
रामरत्न अखबार पढ़ रहे थे, युद्ध में अनी का समय पाया ही चाहता है, बोले, “क्या ! रामचरण । तो ?" ।
"तो क्या," पत्नी कपार पर हाथ रखकर बोली, "सूरज सिर पर आजायगा, तब वह उठेगा ? एक तो कमजोर है और तुमने आँख फेर रखी है। कहती हूँ, स्कूल नहीं भेजोगे ? या ऐसे ही उसे नवाब बनाने का इरादा है ? तुमने ही उसे सिर पर चढ़ा रखा है।"
रामरत्न ने कहा, "क्या बात है-बात क्या है ?" । दिनमणि का भाग्य ही वाम है। वैसा पुत्र और ऐसा पति ! बोली___ "बात क्या है तब से कह तो रही हूँ कि अपने लाडले को चल कर उठाओ। पता है, नौ बजेंगे!"
रामरत्न ने अन्दर जाकर जोर से कहा, "रामचरण ! उठोगे नहीं । या तुम्हें पढ़ने का ख्याल नहीं है ?"
करवट लेकर रामचरण ने पिता की ओर देखा।
उन आँखों में निर्दोष आलस्य था और आज्ञापालन की शीघ्रता नहीं थी। पिता ने कहा, "चलो, उठो, सुना नहीं।" ___मालूम हुआ कि रामचरण ने सचमुच नहीं सुना है । वह झटपट उठकर बैठ नहीं गया । पिता ने हाथ से पकड़ कर उसे खींचते हुए कहा, "चलो, उठते हो कि नहीं ? दिन चढ़ आया है और दुनिया स्कूल गई । नवाब साहब सोते पड़े हैं।"
रामचरण पहले झटके में ही उठकर सीधा हो गया। अब वह आँखें मल रहा था। पिता ने कहा, "चलो, जल्दी निबटो, और स्कूल जाओ। क्या तमाशा बना रखा है, अपने स्कूल का तुम्हें खयाल नहीं है ?"
रामचरण बिस्तर से उठकर चल दिया। दिनमणि उसी कमरे