________________
पाजेब
"हाँ"
"दुअन्नी नहीं थी ?"
"दुअन्नी थी ?"
मुझे क्रोध आने लगा । डपटकर कहा कि सच क्यों नहीं बोलते जी ? सच बताओ कितनी इकन्नियाँ थीं और कितना क्या था । . वह गुम-सुम खड़ा रहा, कुछ नहीं बोला ।
"बोलते नहीं ?" वह नहीं बोला।
"सुनते हो ! बोलो-नहीं तो-" - आशुतोष डर गया । और कुछ नहीं बोला । "सुनते नहीं मैं क्या कह रहा हूँ ?'
इस बार भी वह नहीं बोला तो मैंने पकड़कर उसके कान खींच लिए । वह बिना आँसू लाये गुम-सुम खड़ा रहा ।
"अब भी नहीं बोलोगे ?"
वह डर के मारे पीला हो पाया। लेकिन बोल नहीं सका। मैने जोर से बुलाया, “बंसी यहाँ आओ, इसको ले जाकर कोठरी में बन्द कर दो।'
बंसी नौकर उसे उठाकर ले गया और कोठरी में मँद दिया ।
दस मिनट बाद मैंने फिर उसे पास बुलवाया। उसका मुँह सूजा हुआ था। बिना कुछ बोले उसके ओंठ हिल रहे थे। कोठरी में बंद होकर भी वह रोया नहीं।
मैंने कहा क्यों रे, अब तो अकल आई ? . वह सुनता हुआ गुम-सुम खड़ा रहा।