________________
२८
जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] उसने जवाब में मुंह नहीं खोला।
मैंने आग्रह किया तो वह बोला कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा!
मैंने कहा कि तो जिसको उसने दी होगी उसका नाम बता देगा । सुनकर वह चुप हो गया । मेरे बार-बार कहने पर वह यही कहता रहा कि पाजेब छुन्नू के पास न हुई तो वह देगा कहाँ से ?
अन्त में हारकर मैंने कहा कि वह कहीं तो होगी। अच्छा तुमने कहाँ से उठाई थी ?
"पड़ी मिली थी।" "और फिर नीचे जाकर वह तुमने छुन्नू को दिखाई ?" "हाँ!" "फिर उसीने कहा कि इसे बेचेंगे?"
"कहाँ बेचने को कहा ?" "कहा मिठाई लाएँगे ?" "नहीं पतंग लायँगे।" "अच्छा पतंग को कहा ?" "हाँ" "सो पाजेब छन्न के पास रह गई ?"
"तो उसीके पास होनी चाहिए न ? या पतंग वाले के पास होगी। जामो केटा उससे ले आओ। कहना हमारे बाबूजी तुम्हें इनाम देंगे।"
वह जाना नहीं चाहता था। उसने फिर कहा कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा?