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पाजेब
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उस वक्त तो खैर मुन्नी किसी काम में बहल गई। लेकिन जब दो पहर आई मुन्नी की बूआ, तब वह मुन्नी सहज मानने वाली न थी।
बूश्रा ने मुन्नी को मिठाई खिलाई और गोद में लिया और कहा कि अच्छा, तो तेरी पाजेब अब के इतवार को जरूर लेती आऊँगी। __इतवार को बूमा आई और पाजेब ले आई । मुन्नी उन्हें पहनकर खुशी के मारे यहाँ-से-वहाँ ठुमकती फिरी । रुकमिन के पास गई और कहा देख रुकमिन, मेरी पाजेय । शीला को भी अपनी पाजेब दिखाई । सबने पाजेब पहनी देखकर उसे प्यार किया और तारीफ की। सचमुच वह चाँदी की सफेद दो-तीन लड़ियाँ-सी टखनों के चारों और लिपट कर, चुपचाप बिछी हुई, ऐसी सुघड़ लगती थीं कि बहुत ही, और बच्ची की खुशी का ठिकाना न था। __और हमारे महाशय आशुतोष, जो मुन्नी के बड़े भाई थे, पहले तो मुन्नी को सजी-वजी देखकर बड़े खुश हुए। वह हाथ पकड़कर अपनी बढ़िया मुन्नी को पाजेब-सहित दिखाने के लिए
आस-पास ले गये। मुन्नी की पाजेब का गौरव उन्हें अपना भी मालूम होता था । वह खूब हँसे और ताली पीटी, लेकिन थोड़ी देर बाद वह ठुमकने लगे कि मुन्नी को पाजेब दी, सो हम भी बाईसिकिल लेंगे।
बूश्रा ने कहा कि अच्छा बेटा अबके जन्म-दिन को तुझे भी बाईसिकिल दिलवाएँगे। __ आशा बाबू ने कहा कि हम तो अभी लेंगे।
श्रा ने कहा, "छी-छी तू कोई लड़की है ? जिद तो लड़कियाँ