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पाजक बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली हैं। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियाँ आपस में लपक के के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पाँव में पड़े उसी के अनुकल हो रहती हैं।
पास-पड़ोस में तो सब नन्ही-बड़ी के पैरों में आप वही पाजेब देख लीजिए । एक ने पहनी कि फिर दूसरी ने भी पहनी। देखा. देखी में इस तरह उनका न पहनना मुश्किल हो गया है।
हमारी मुन्नी ने भी कहा कि बाबूजी, हम पाजेब पहनेंगे। बोलिए भला कठिनाई से चार बरस की उम्र और पाजेब पहनेगी।
मैंने कहा कि कैसी पाजेब ?
बोली कि हाँ, वही जैसी रुकमन पहनती है, जैसी सीला पहनती है।
मैंने कहा कि अच्छा-अच्छा । बोली कि मैं तो आज ही मँगा लूँगी। मैंने कहा कि अच्छा भाई श्राज सही।
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