________________
कस्बे के हाई स्कूल के हाते में लड़के इधर-से-उधर घूम रहे हैं। चहल-पहल है, उत्साह है, क्योंकि नतीजा निकलने वाला है । देर सही नहीं जा रही है और कमरों के अन्दर बंद बैठे बड़े मास्टर लोग मानो खास इसी लिये देर लगा रहे हैं। आखिर नतीजा निकला । चपरासी के लिये मुश्किल हुई कि वह काराज को बोर्ड पर कैसे चिपकाए । छीन-झपट, खींच-तान में पता न चला कि चपरासी बचेगा कि नहीं। लेकिन चपरासी की मौत न आई और कागज भी साबित रहा । लड़के नतीजा देखते, जरा गौर से देखते, देख कर फिर लौट जाते । ऐसे क्रमशः हल्ला-गुल्ला कम हुआ और तब अलग-थलग-सा एक लड़का, कठिनाई से दस बरस का होगा, धीमे से आगे बढ़ा और बोर्ड के सामने आ खड़ा हुआ । उसने स्थिरता से कागज देखा, अपने नाम के आगे के मार्क्स देखने के साथ उसने आस-पास के नाम देखे । वह कुछ देर मानों वहाँ जमा खड़ा रहा, फिर हटा, और धीमी चाल से चल दिया।
उसका नाम धनंजय है। इस नतीजे ने बताया है कि वह