________________
राज-पथिक
१६७
माँ ने कहा, "क्यों, भला ?" कुमार ने कहा, "रतन तो पत्थर होता है।" माँ ने कहा, "तो फिर क्या पहनती हैं ?" "तुम बताओ, क्या पहनती हैं !"
माँ ने कहा, "मैं तो समझती हूँ, कि तब वह कुछ भी नहीं पहनती।"
"नंगी रहती हैं ?" "हाँ, नंगी ही रहती है।"
वह बात राजकुमार को एकदम बहुत बुरी लगी। उसने एक साथ ही सामने से थाली सरका कर कहा, “झूठ, झूठ !” _ "माँ ने कहा, "बेटा, खाना खाओ । रात को बातें होंगी कि वह क्या पहनती है ?"
किन्तु बालक के मन को यह रानी के कुछ भी न पहनने की बात तो एकदम अस्वीकार्य ही जान पड़ती है। नहीं, नहीं, कभी ऐसा नहीं हो सकता । उसे अपने नीलम देश की रानी की यह बड़ी भारी अवज्ञा मालूम होती है। छिः छिः, माँ इतना भी नहीं जानती कि ऐसा कभी नहीं हो सकता।
उसने कहा, "नहीं, मुझे भूख नहीं है।" माँ ने कहा, "खाओ, बेटा, अभी तुमने खाया क्या है।"
बालक ने गुस्से में भर कहा, "मैं नहीं खाऊँगा। रानी नंगी नहीं रहती हैं, तुमने क्यों कहा ?" । ___ माँ ने हँसकर कहा, "हाँ, हाँ मुझे याद आ गई। वह सपने के कपड़े पहनती है । मैं भूल गई थी। और वह चाँदनी से बारीक होते हैं।"