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दो चिड़ियाँ
१७६ माँ ने कहा, "बेटा, तुम अच्छी हो ? रात मेंह बहुत पड़ा था।"
"रात मेंह पड़ा था, अम्मा ? मुझे पता नहीं। मैं तो खूब आराम से सोई...। अम्मा यह क्या है, तुम भीग रही हो !"
"कुछ नहीं, बेटा!...तो तुम आराम से रहीं ! अच्छा है।"
किन्तु बेटी को लगा, जैसे उसे अपने उल्लास पर लाज आनी चाहिए। उसने कहा, "अम्मा!"
अम्मा ने कहा, "बेटा, मैं चाहती हूँ, तुम सुखी रहो...मेरे पीछे तुम सुखी रहना।" __ बेटी ने चिचिया कर कहा, "अम्मा, मैं शाम के पास चली गई थी। पहली बार ही गई थी। अब तक मैं तुम्हारे पास ही रही। मैं अब तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगी...पर, वह मुझे प्यार करता है ! ...अम्मा, मैं अब नहीं जाऊँगी।" ___"हाँ, बेटा ! वह तुझे प्यार करता है ! और मैं चाहती हूँ तू सुखी रहे ।"
बेटी ने कहा, "अम्मा, मैं तुम्हें छोड़कर अब कभी न जाऊँगी। तुम घोंसले में चलो । कैसी भीग रही हो !"
माँ ने कहा, "बेटा, तुम उसे भी इस घोंसले में ले आना। तुम दोनों यहाँ रहना । मैं तो बहुत रह चुकी हूँ।"
बेटी कातर कण्ठ से चिचियाई, "अम्मा! अम्मा !"
अम्मा चुप रही। वह कुछ नहीं बोल सकी। चीख भी नहीं सकी।
बेटी नहीं जान सकी, वह अपने उल्लास में अब किस तरह मग्न रहे । और जोर से चीखी, "अम्मा ! अम्मा !"
अम्मा ने कहा; "बेटी मैं जाऊँ-पीछे तुम प्रसन्न रहना । "अम्मा, कहाँ जाओगी तुम ?"