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दो चिड़िया
साँझ से घटा घिर रही थी । अँधेरा पहले से हो चला । अभी उमस थी, बूँदें नहीं गिर रही थीं । बादल सुन्न, घने काले-काले धरती पर छाये थे । मानों कुछ सोचते खड़े थे ।
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इसी समय अपने घोंसले से बाहर निकल कर एक चिड़िया डाल पर आ बैठी
बादल उमड़ रहे थे । चिड़िया उनकी ओर देखती हुई वहीं बैठी रह गई । उसका जी भारी था पर वह चिचित्रा नहीं सकती थी। जैसे बादल भरे खड़े थे, जाने उन्हें बरस पड़ने को किसकी प्रतीक्षा थी, वैसे ही उस चिड़िया का जी भीतर से भर कर पक-सा गया था और जाने उसे चिचिश्रा उठने के लिए किसकी प्रतीक्षा थी ।
कि कुछ बूँदें, टप, आ टपकीं । चिड़िया ने काले बादलों की ओर चोंच खोल दी । नहीं; वह पानी की बूँद नहीं चाहती। वह खुली चोंच की राह से भीतर की एक रुद्ध चीख को बाहर कर
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