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जनता में
जनता एक्सप्रेस, जिसमें तीसरा ही दर्जा है । अप्रैल का महीना है, तीसरे पहर का समय । गाड़ी भरी जा रही है । छत पर लोग हैं और दरवाजे के बाहर भी लटके हुए हैं। हैण्डिल उखड़े तो बीसियों जान से जायँ । और सुनते हैं, ऐसा हुआ भी है। लेकिन जिन्दगी का बहाव है जो मौत से रुकना नहीं जानता । लोग जा रहे हैं; क्योंकि जाना जरूरी है । पिच रहे हैं, मर रहे हैं फिर भी जा रहे हैं। क्योंकि कुम्भ है, और जाना आवश्यक है कि जिससे मौत पुण्य में हो।
लीजिये, स्टेशन आनेवाला है। लोग तैयार हो बैठे। डिब्बा बस अब एक था । बलिष्ठ खिड़कियों पर तैनात हो गये । जिधर प्लैटफार्म को आना था उधर योद्धा जमे, शेष दूसरी तरफ आन
गाड़ी धीमी हुई और एक दुर्भाग्य का पता चला । वह यह कि चार मुसाफिर उस स्टेशन पर उतरने वाले हैं। कम्बख्तों को वहीं उतरना था। खैर, फैसला हुआ कि दरवाजा न खुलेगा । इन्हें
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